Hasbunallahu wa ni’mal wakeel – एक ताक़तवर इस्लामी दुआ

इस्लाम हमें हर हाल में अल्लाह पर भरोसा और तवक्कुल (भरोसा) करना सिखाता है। जब भी मुसलमान किसी मुसीबत, डर, ग़म या दुश्मनी में होता है, तो वह एक बेहद खास दुआ पढ़ता है:
“हसबुनल्लाहु व नि’मल वकीलु”
यह दुआ न केवल दिल को सुकून देती है, बल्कि अल्लाह की मदद और रहमत का दरवाज़ा भी खोलती है।

Hasbunallahu wa ni'mal wakeel - एक ताक़तवर इस्लामी दुआ

حَسْبُنَا اللَّهُ وَنِعْمَ الْوَكِيلُ
हस्बुनल्लाहु व निमाल वकील
Hasbunallahu wa ni’mal wakeel
अल्लाह हमारे लिए काफी है, और वही सबसे अच्छा कारसाज़ (मामलों का सुलझाने वाला) है।

जिन लोगों से कहा गया कि दुश्मन तुम्हारे ख़िलाफ़ जमा हो गए हैं, उनसे डरो।” यह सुनकर उनका ईमान और मज़बूत हो गया और उन्होंने कहा:

“हमें अल्लाह ही काफी है और वही सबसे बेहतर कारसाज़ है।”
📚 (Surah Aal-e-Imran – 3:173)

यह आयत उस वक़्त नाज़िल हुई जब मुसलमानों को दुश्मनों की भारी फौज का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने डरने के बजाय अल्लाह पर भरोसा किया और यही दुआ पढ़ी।

  1. डर और परेशानी से निजात: जब दिल में डर हो या हालात बिगड़ रहे हों,
    यह दुआ राहत देती है।
  2. दिल को सुकून: यह दुआ पढ़ने से अंदरूनी तसल्ली मिलती है,
    क्योंकि इंसान समझता है कि अल्लाह मेरे साथ है।
  3. ईमान में मजबूती: जब इंसान इस दुआ को यकीन के साथ पढ़ता है,
    तो उसका तवक्कुल और ईमान मज़बूत होता है।
  4. अल्लाह की मदद का वादा: यह दुआ अल्लाह से मदद माँगने का बेहतरीन
    तरीका है – और अल्लाह अपने बन्दों की मदद करता है।
  5. दुश्मनों और खतरे से सुरक्षा: सहाबा (रज़ि.) और नबी ﷺ ने जंगों और
    खतरों में यह दुआ पढ़ी।
  1. जब कोई परेशानी या तकलीफ़ हो
  2. डर, टेंशन या दुश्मन सामने हो
  3. कोई बड़ा फैसला करना हो
  4. जब सारे रास्ते बंद लग रहे हों
  5. सुबह और शाम 7 बार पढ़ना सुन्नत अमल है

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

“जो शख्स सुबह और शाम 7 बार ‘हसबुनल्लाहु व नि’मल वकील’ पढ़े, अल्लाह तआला उसे हर परेशानी से काफ़ी हो जाएगा।”
📘 (रिवायत: अबू दाऊद, इब्न माजा – हसन हदीस)

जब हम कहते हैं “हसबुनल्लाहु व नि’मल वकील”, हम अपने दिल को यह यकीन दिला रहे होते हैं कि अब मामला अल्लाह के हवाले है — और अल्लाह कभी अपने बन्दों को अकेला नहीं छोड़ता।

हर मुसलमान को यह दुआ याद करनी चाहिए और मुश्किल वक्त में दिल से पढ़नी चाहिए। यह दुआ सिर्फ लफ्ज़ नहीं, बल्कि यकीन, तवक्कुल और अल्लाह से रिश्ते का इज़हार है।

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