Surah Maun in Hindi, Arabic, Roman English with Tarjuma. बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम, अस्सलामुअलैकुम वारहमतुल्लाहि वबरकातुह, सूरह माऊन क़ुरआन मजीद की 107वीं सूरह है, जिसमें कुल 7 आयतें हैं। यह सूरह मक्का में नाज़िल हुई और इसमें समाज के उन बुरे गुणों की निंदा की गई है, जो इंसान को अल्लाह की राह से दूर ले जाते हैं। इस सूरह में गरीबों और यतीमों की मदद करने, नमाज़ में खालिसियत लाने, और दिखावे से बचने की ताकीद की गई है।
Surah Al Maun
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम
Bismilla Hiraahma Nir Rahaeem
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत बड़ा मेहरबान व निहायत रहम वाला है।
أَرَأَيْتَ الَّذِي يُكَذِّبُ بِالدِّينِ
अरएतल लजी यु कज्जीबू बिद्दिन
Ara ‘aytal Lazee Yukazzibu Biddeen
क्या तुमने उस व्यक्ति को देखा जो दीन को झुठलाता है?
فَذَٰلِكَ الَّذِي يَدُعُّ الْيَتِيمَ
फजालीकल लजी यदु उल-यतीम
Fazaalikal Lazee Yadu’ul-yateem
वही तो है जो यतीम को धक्का देता है,
وَلَا يَحُضُّ عَلَىٰ طَعَامِ الْمِسْكِينِ
वला या हुद्दु अला ता-आमिल मिसकीन
Wa La Yahuddu ‘alaa Ta’aamil Miskeen
और मुफ़लिस को खाना खिलाने के लिए नहीं उकसाता।
فَوَيْلٌ لِّلْمُصَلِّينَ
फ वई लुल-लिल मु सल्लीन
Fa Wailul-lil Musalleen
तो बर्बादी है उन नमाज़ पढ़ने वालों के लिए,
الَّذِينَ هُمْ عَن صَلَاتِهِمْ سَاهُونَ
अल लजीना हुम अन सलातीहीम साहून
Allazeena Hum ‘an Salaatihim Saahoon
जो अपनी नमाज़ में लापरवाह हैं।
الَّذِينَ هُمْ يُرَاءُونَ
अल लजीना हुम युरा-उन
Allazeena Hum Yuraaa’oon
जो दिखावा करते हैं।
وَيَمْنَعُونَ الْمَاعُونَ
व यमना उनल मा-उन
Wa Yamna’oonal Maa’oon
और छोटी-छोटी चीज़ों (मदद) को रोकते हैं।
Surah Al Maun in Arabic
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
أَرَأَيْتَ الَّذِي يُكَذِّبُ بِالدِّينِ
فَذَٰلِكَ الَّذِي يَدُعُّ الْيَتِيمَ
وَلَا يَحُضُّ عَلَىٰ طَعَامِ الْمِسْكِينِ
فَوَيْلٌ لِّلْمُصَلِّينَ
الَّذِينَ هُمْ عَن صَلَاتِهِمْ سَاهُونَ
الَّذِينَ هُمْ يُرَاءُونَ
وَيَمْنَعُونَ الْمَاعُونَ
Surah Al Maun in Hindi
बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम
1. अरएतल लजी यु कज्जीबू बिद्दिन
2. फजालीकल लजी यदु उल-यतीम
3. वला या हुद्दु अला ता-आमिल मिसकीन
4. फ वई लुल-लिल मु सल्लीन
5. अल लजीना हुम अन सलातीहीम साहून
6. अल लजीना हुम युरा-उन
7. व यमना उनल मा-उन
Surah Al Maun in Roman English
Bismilla Hiraahma Nir Rahaeem
1. Ara ‘aytal Lazee Yukazzibu Bidden
2. Fazaalikal Lazee Yadu’ul-yateem
3. Wa La Yahuddu ‘alaa Ta’aamil Miskeen
4. Fa Wailul-lil Musalleen
5. Allazeena Hum ‘an Salaatihim Saahoon
6. Allazeena Hum Yuraaa’oon
7. Wa Yamna’oonal Maa’oon
Surah Al Maun Tarjuma in Hindi
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत बड़ा मेहरबान व निहायत रहम वाला है।
1. क्या तुमने उस व्यक्ति को देखा जो दीन को झुठलाता है?
2. वही तो है जो यतीम को धक्का देता है,
3. और मुफ़लिस को खाना खिलाने के लिए नहीं उकसाता।
4. तो बर्बादी है उन नमाज़ पढ़ने वालों के लिए,
5. जो अपनी नमाज़ में लापरवाह हैं।
6. जो दिखावा करते हैं।
7. और छोटी-छोटी चीज़ों (मदद) को रोकते हैं।
Surah Al Maun in English
Beginning with the name of Allah, the Most Gracious, the Most Merciful. 1. Have you seen the person who rejects religion?
2. He is the one who pushes the orphan,
3. And does not encourage the beggar to feed him.
4. So ruin is for those who pray
5. Those who are negligent in their prayers.
6. Those who show off.
7. And who withhold even small things (help).
सूरह माऊन के फायदे और फज़ीलत (Surah Maun Benefits)
- सूरह माऊन की तिलावत इंसान के दिल को नरम करती है और यतीमों व गरीबों के प्रति दयालुता पैदा करती है।
- यह सूरह इंसान को याद दिलाती है कि नमाज़ और इबादत का असली मकसद अल्लाह की रज़ा हासिल करना है, न कि दिखावा करना।
- यह सूरह इंसान को समाज में जरूरतमंदों की मदद करने और उनके हक़ को देने की ताकीद करती है।
- हदीस में आता है कि अल्लाह उन लोगों से नाराज़ होते हैं जो गरीबों और जरूरतमंदों की मदद नहीं करते। (सहीह अल-बुखारी: हदीस नंबर 1427)
सूरह माऊन का अमल
- हर दिन इस सूरह की तिलावत करें ताकि अल्लाह के रास्ते पर चलने की ताकत मिले।
- गरीबों, यतीमों और जरूरतमंदों की मदद करें।
- नमाज़ में खालिसियत लाएं और दिखावे से बचें।
- छोटी-छोटी चीज़ों में भी दूसरों की मदद करने की आदत डालें।
सूरह माऊन हमें यह सिखाती है कि इस्लाम में सिर्फ इबादत का दिखावा करना काफी नहीं है, बल्कि अल्लाह की रज़ा हासिल करने के लिए समाज की भलाई करना भी बेहद जरूरी है। जो लोग अपने बुरे आचरण से दूसरों को नुकसान पहुंचाते हैं, वे अल्लाह की नजरों में गुनहगार ठहरते हैं।इस सूरह की तिलावत से हम न केवल अपनी इबादत को बेहतर बना सकते हैं, बल्कि अपने समाज को एक रहमदिल और इंसाफ़ पसंद जगह बना सकते हैं।